Sunday, March 17, 2013

गर्व से कहो हम मोटे हैं



ये लेख सिर्फ और सिर्फ मोटे लोगों के लिए है। पतले इसे न पढ़ें।

मोटे मित्रों, दुनिया के मोटे लोगों के खिलाफ एक तगड़ी साजिश चल रही है। ये साजिश विश्वव्यापी है। दुनिया भर के पतले इसमें शामिल हैं। मुझे पता था की आप इसे पढ़ते ही सन्नाटे में आ  जायेंगे। मित्रों, पेशे से मैं खोजी पत्रकार हूँ और इस साजिश के बारे में काफी बारीकी से छानबीन करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा हूँ।

अगर आपको ये साजिश नहीं दिखी तो इसकी अकेली वजह ये है की हम मोटे सरल स्वभाव के भोले भाले लोग होते हैं। आप आँखें खोल कर देखें तो आपको दिखेगा कि कैसे दुनिया मोटे और पतले लोगों में बटी है और कैसे पतले हमारे खिलाफ लगातार षड़यंत्र कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर पतलों ने सालों से शोर मच रखा है कि मोटापा सभी बीमारियों की जड़ है और दुनिया भर के मोटे बस किसी भी वक़्त मर सकते हैं। किसी भी अस्पताल का दौरा करने से आपको पता चलेगा कि कब्र में पैर लटकाए बैठे ज्यादातर लोग डीलडौल से मरियल टाइप हैं। इसके उलट मोटे लोग ज्यादातर शापिंग मॉल में खाते पीते मौज मनाते मिलेंगे। दरअसल हमारी यही मस्ती पतलों की जलन की मुख्य वजह है।

मित्रों, मोटापा एक दिव्य अवस्था है। मोटापा एक विचारधारा है, एक जीवनदर्शन है। मोटापा शारीरिक नहीं  बल्कि बौद्धिक और आध्यात्मिक अवस्था है। मोटापा एक ईश्वरीय गुण है। ईश्वर चाहता है कि हम मोटे और गोल मटोल रहें,  वरना क्या वजह है कि आसमान से  गिरती बूँद गोल होती है, पतली नहीं। सोचिये धरती , चन्दा, सूरज सब गोल क्यों हैं। पतला होना या इसकी कोशिश करना ईश्वर की अवमानना है। रोटी, पहिया, पैसा जैसी महत्वपूर्ण चीजें गोल मटोल हैं। गोल मटोल में सौंदर्य है, वरना बाला, बेन्दा, नथुनी सब गोल मटोल क्यों होते।

इसमें पतलों को भी कभी संदेह नहीं रहा की मोटे उनसे अधिक शक्तिशाली होते हैं। ये हम मोटों की सहिष्णुता  और क्षमाशीलता ही है की पतलों  ने हम पर मोटी बुद्धि और मोटी खाल जैसे अपमानजनक मुहावरे गढ़े। मोटों  पर बने अपमानजनक चुटकुलों पर हंसने को अक्सर हमें मजबूर किया जाता है। इस हास्य बोध पर मुझे आपत्ति है। मैं इस विलक्षण हास्य बोध वाले पतलों से पूछना चाहता हूँ कि जब किसी नेशनल पार्क में मोटा तगड़ा हाथी अचानक सामने आ जाता है तो उनकी सिट्टी पिट्टी  क्यों  गुम हो जाती है। तब हंसी का फव्वारा क्यों नहीं छूटता। दरअसल पतले मोटों और मोटापे के शैर्य से डरते हैं।

मैं कहता हूँ कि दुनिया के मोटों एक हो, और अपनी ताकत को पहचानो। आज देश में मोटापा एक लोकतांत्रिक  सच्चाई है। पुलिस थानों में हमारा बहुमत है, संसद में हमारा बहुमत है, सभी कंपनियों के बोर्डों में भी हमारा ही बहुमत है। ज्यादातर बॉस मोटे हैं और मातहत  मरियल हैं। अगर हम वक़्त रहते न चेते तो वही होगा जो देश की सरकार में  हुआ है। कितने मोटों की मदद और समर्थन से (यहाँ मैं सिर्फ शरद पवार जी की बात नहीं कर रहा ) एक पतला प्रधानमन्त्री बना बैठा है।

सवाल ये है की स्थिति को बदला कैसे जाये। जवाब आसान है। सबसे पहले तो पतलों के दुष्प्रचार में फंसकर हीन भावना से ग्रस्त न हों। पतला होने का प्रयास तो बिलकुल न करें। सोचिये पतलों ने हमारी कैसी विकट  हास्यास्पद स्थिति कर दी है। हम अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई उन्हें देकर उनके जिम और स्लिमिंग सेंटरों में पसीना बहाते हैं और भूखे प्यासे रह कर वो मांस  गलाते हैं जो इतनी मुश्किल से पाला है। इस सब को छोडो और गर्व से कहो हम मोटे हैं।

पतलों को रास्ते पर लाने में  हम सब थोडा बहुत योगदान कर सकते हैं। बस या ट्रेन में बैठे दो मोटे बीच में बैठे पतले को दबा सकते हैं, बस की भीड़ में हम मासूम शक्ल बना कर किसी पतले के पैर पर पैर  रख कर उसे नानी याद करा सकते हैं। अगर आप बॉस हैं तो पतले कर्मचारियों का शोषण करें, उन्हें प्रताड़ित करें, इन्क्रीमेंट न  दें। मोटे थानेदार पतले चोरों को पीट पीट कर रास्ते पर लायें इत्यादि।

इसके  अलावा मेरे मन में एक क्रांतिकारी विचार भी है। इसके लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होगी। क्यों न दुनिया के सभी मोटे ठीक दोपहर बारह बजे अपने आसपास दिखने वाले किसी पतले की पीठ पर एक जोरदार  घूँसा जड़ें। इस व्यापक हमले से पूरा  पतला समाज हतप्रभ रह जाएगा। उन्हें शिकायत के लिए किसी मोटे थानेदार या मोटे वकील की शरण लेनी पड़ेगी। हम इससे अपनी ताक़त का अहसास करा सकेंगे और पतले दो दिन में रास्ते में आ जायेंगे।











 

No comments:

Post a Comment