Wednesday, August 25, 2010

तुम

कांच के साफ़ चमचमाते गोल बर्तन में
बैठा हो
आसमान का सबसे बदमाश सितारा
दुनिया के सारे फूलों की खुशबुओं में भीगा
दिलकश हरियाली की शाल ओढ़े
जिस पर टंके हों सुबह सवेरे की ओस के मोती
सुबह की पहली किरण में
चम चम चमकते
सबसे सुरीली चिड़ियों की
बेशकीमती बोलियों में पिरोये हुए

मेरी ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत वक़्त
आस पास बिखरा हो मौसम बन कर
और साथ हो
जल्दी सुबह का गुनगुना सूरज
देर शाम का आँखे मलता चाँद
पहाड़ की गोद से निकली
घुटनों चलती तोतली नदी का एक अंजुली
शहद सा मीठा पानी
छोटे से मेमने की एक मुट्ठी मासूमियत
फूल-सुंघनी चिड़िया के पंखों की चुटकी भर बेसब्री
जो साध कर रखती है उसे हवा में
तुम
जैसे
कांच के साफ़ चमचमाते गोल बर्तन में
बैठा हो
आसमान का सबसे बदमाश सितारा

Friday, August 20, 2010

बुझी- बुझी उदास दास्तान

बुझी- बुझी उदास दास्तान कहता है
हरारतों की तरह जो बदन में रहता है

सुबह से रोज यहाँ ईंट-ईंट जुड़ती है
हर एक शाम यहाँ राजमहल ढहता है

हर एक जंग में गाढ़ा गरीब खून बहा
तख़्त पर बा-अदब शाहों के पास रहता है

जम्हूरियत का जश्न रौशनी से जगमग है
बड़ा गरीब है जो इसका खर्च सहता है

कोई एक शाम को दुखता हुआ सा छू भर दे
हमारे दिल से जमाने का दर्द बहता है