कांच के साफ़ चमचमाते गोल बर्तन में
बैठा हो
आसमान का सबसे बदमाश सितारा
दुनिया के सारे फूलों की खुशबुओं में भीगा
दिलकश हरियाली की शाल ओढ़े
जिस पर टंके हों सुबह सवेरे की ओस के मोती
सुबह की पहली किरण में
चम चम चमकते
सबसे सुरीली चिड़ियों की
बेशकीमती बोलियों में पिरोये हुए
मेरी ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत वक़्त
आस पास बिखरा हो मौसम बन कर
और साथ हो
जल्दी सुबह का गुनगुना सूरज
देर शाम का आँखे मलता चाँद
पहाड़ की गोद से निकली
घुटनों चलती तोतली नदी का एक अंजुली
शहद सा मीठा पानी
छोटे से मेमने की एक मुट्ठी मासूमियत
फूल-सुंघनी चिड़िया के पंखों की चुटकी भर बेसब्री
जो साध कर रखती है उसे हवा में
तुम
जैसे
कांच के साफ़ चमचमाते गोल बर्तन में
बैठा हो
आसमान का सबसे बदमाश सितारा
Wednesday, August 25, 2010
Friday, August 20, 2010
बुझी- बुझी उदास दास्तान
बुझी- बुझी उदास दास्तान कहता है
हरारतों की तरह जो बदन में रहता है
सुबह से रोज यहाँ ईंट-ईंट जुड़ती है
हर एक शाम यहाँ राजमहल ढहता है
हर एक जंग में गाढ़ा गरीब खून बहा
तख़्त पर बा-अदब शाहों के पास रहता है
जम्हूरियत का जश्न रौशनी से जगमग है
बड़ा गरीब है जो इसका खर्च सहता है
कोई एक शाम को दुखता हुआ सा छू भर दे
हमारे दिल से जमाने का दर्द बहता है
हरारतों की तरह जो बदन में रहता है
सुबह से रोज यहाँ ईंट-ईंट जुड़ती है
हर एक शाम यहाँ राजमहल ढहता है
हर एक जंग में गाढ़ा गरीब खून बहा
तख़्त पर बा-अदब शाहों के पास रहता है
जम्हूरियत का जश्न रौशनी से जगमग है
बड़ा गरीब है जो इसका खर्च सहता है
कोई एक शाम को दुखता हुआ सा छू भर दे
हमारे दिल से जमाने का दर्द बहता है
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