Thursday, January 9, 2014

मुझे गिरना है डाल से 

और मिल जाना है मिटटी में 

दब जाना है जमीन के नीचे 

बनना है खाद 

कल की खुशबूदार पौध के लिए 


कल की खुशबूदार पौध के लिए 
आज मुझे मिलना है मिटटी में  




Sunday, March 17, 2013

गर्व से कहो हम मोटे हैं



ये लेख सिर्फ और सिर्फ मोटे लोगों के लिए है। पतले इसे न पढ़ें।

मोटे मित्रों, दुनिया के मोटे लोगों के खिलाफ एक तगड़ी साजिश चल रही है। ये साजिश विश्वव्यापी है। दुनिया भर के पतले इसमें शामिल हैं। मुझे पता था की आप इसे पढ़ते ही सन्नाटे में आ  जायेंगे। मित्रों, पेशे से मैं खोजी पत्रकार हूँ और इस साजिश के बारे में काफी बारीकी से छानबीन करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा हूँ।

अगर आपको ये साजिश नहीं दिखी तो इसकी अकेली वजह ये है की हम मोटे सरल स्वभाव के भोले भाले लोग होते हैं। आप आँखें खोल कर देखें तो आपको दिखेगा कि कैसे दुनिया मोटे और पतले लोगों में बटी है और कैसे पतले हमारे खिलाफ लगातार षड़यंत्र कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर पतलों ने सालों से शोर मच रखा है कि मोटापा सभी बीमारियों की जड़ है और दुनिया भर के मोटे बस किसी भी वक़्त मर सकते हैं। किसी भी अस्पताल का दौरा करने से आपको पता चलेगा कि कब्र में पैर लटकाए बैठे ज्यादातर लोग डीलडौल से मरियल टाइप हैं। इसके उलट मोटे लोग ज्यादातर शापिंग मॉल में खाते पीते मौज मनाते मिलेंगे। दरअसल हमारी यही मस्ती पतलों की जलन की मुख्य वजह है।

मित्रों, मोटापा एक दिव्य अवस्था है। मोटापा एक विचारधारा है, एक जीवनदर्शन है। मोटापा शारीरिक नहीं  बल्कि बौद्धिक और आध्यात्मिक अवस्था है। मोटापा एक ईश्वरीय गुण है। ईश्वर चाहता है कि हम मोटे और गोल मटोल रहें,  वरना क्या वजह है कि आसमान से  गिरती बूँद गोल होती है, पतली नहीं। सोचिये धरती , चन्दा, सूरज सब गोल क्यों हैं। पतला होना या इसकी कोशिश करना ईश्वर की अवमानना है। रोटी, पहिया, पैसा जैसी महत्वपूर्ण चीजें गोल मटोल हैं। गोल मटोल में सौंदर्य है, वरना बाला, बेन्दा, नथुनी सब गोल मटोल क्यों होते।

इसमें पतलों को भी कभी संदेह नहीं रहा की मोटे उनसे अधिक शक्तिशाली होते हैं। ये हम मोटों की सहिष्णुता  और क्षमाशीलता ही है की पतलों  ने हम पर मोटी बुद्धि और मोटी खाल जैसे अपमानजनक मुहावरे गढ़े। मोटों  पर बने अपमानजनक चुटकुलों पर हंसने को अक्सर हमें मजबूर किया जाता है। इस हास्य बोध पर मुझे आपत्ति है। मैं इस विलक्षण हास्य बोध वाले पतलों से पूछना चाहता हूँ कि जब किसी नेशनल पार्क में मोटा तगड़ा हाथी अचानक सामने आ जाता है तो उनकी सिट्टी पिट्टी  क्यों  गुम हो जाती है। तब हंसी का फव्वारा क्यों नहीं छूटता। दरअसल पतले मोटों और मोटापे के शैर्य से डरते हैं।

मैं कहता हूँ कि दुनिया के मोटों एक हो, और अपनी ताकत को पहचानो। आज देश में मोटापा एक लोकतांत्रिक  सच्चाई है। पुलिस थानों में हमारा बहुमत है, संसद में हमारा बहुमत है, सभी कंपनियों के बोर्डों में भी हमारा ही बहुमत है। ज्यादातर बॉस मोटे हैं और मातहत  मरियल हैं। अगर हम वक़्त रहते न चेते तो वही होगा जो देश की सरकार में  हुआ है। कितने मोटों की मदद और समर्थन से (यहाँ मैं सिर्फ शरद पवार जी की बात नहीं कर रहा ) एक पतला प्रधानमन्त्री बना बैठा है।

सवाल ये है की स्थिति को बदला कैसे जाये। जवाब आसान है। सबसे पहले तो पतलों के दुष्प्रचार में फंसकर हीन भावना से ग्रस्त न हों। पतला होने का प्रयास तो बिलकुल न करें। सोचिये पतलों ने हमारी कैसी विकट  हास्यास्पद स्थिति कर दी है। हम अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई उन्हें देकर उनके जिम और स्लिमिंग सेंटरों में पसीना बहाते हैं और भूखे प्यासे रह कर वो मांस  गलाते हैं जो इतनी मुश्किल से पाला है। इस सब को छोडो और गर्व से कहो हम मोटे हैं।

पतलों को रास्ते पर लाने में  हम सब थोडा बहुत योगदान कर सकते हैं। बस या ट्रेन में बैठे दो मोटे बीच में बैठे पतले को दबा सकते हैं, बस की भीड़ में हम मासूम शक्ल बना कर किसी पतले के पैर पर पैर  रख कर उसे नानी याद करा सकते हैं। अगर आप बॉस हैं तो पतले कर्मचारियों का शोषण करें, उन्हें प्रताड़ित करें, इन्क्रीमेंट न  दें। मोटे थानेदार पतले चोरों को पीट पीट कर रास्ते पर लायें इत्यादि।

इसके  अलावा मेरे मन में एक क्रांतिकारी विचार भी है। इसके लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होगी। क्यों न दुनिया के सभी मोटे ठीक दोपहर बारह बजे अपने आसपास दिखने वाले किसी पतले की पीठ पर एक जोरदार  घूँसा जड़ें। इस व्यापक हमले से पूरा  पतला समाज हतप्रभ रह जाएगा। उन्हें शिकायत के लिए किसी मोटे थानेदार या मोटे वकील की शरण लेनी पड़ेगी। हम इससे अपनी ताक़त का अहसास करा सकेंगे और पतले दो दिन में रास्ते में आ जायेंगे।











 

Friday, October 7, 2011

तू आ रही है न?





पूरी दुनिया जैसे बन गयी है

खुशबू की बड़ी सी शीशी

और बदमाश, अल्हड़ तू

अपने में खोयी

जैसे भूल गयी है इसे खोल कर



या कि

सुकून जैसी बदली में

चुभा कर एक पिन

भाग चली है खिलखिलाती

मस्ती में डूबी तू

और भीग रहा हूँ मैं

तेरे जादू की बरसात में



या कि

मेरी दुनिया है

बड़ा सा ड्राइंग बोर्ड

और बाल खोले तू

सुबह सुबह

लम्बी खूबसूरत उँगलियों के ब्रश बनाकर

रंग भर रही है मेरी ज़िन्दगी में

तेरे होठों के सुर्ख रंग से रंगी हैं घर की दीवारें

तेरे दामन कि खुशबू में सराबोर आँचल

खिडकियों पर परदे बनकर

मुंह लग रहा है हवाओं के

बालों के रंग से सजी है सपनीली, खूबसूरत रात

तेरे गोरे बदन सा रंगा है चंदा

और फिर साँसों की खुशबू बसी है हवाओं में

तेरी साड़ी के सितारे सज गए हैं आसमान में

और तेरी आवाज़ सज गयी है

सन सन बहती हवा में



जाने क्या हुआ है

कि होश खो रहे हैं मेरे

सब्र छुड़ा रहा है हाथ

तेरे क़दमों की आहट

घुल गयी है मेरे दिल की धक धक में

कदम जाने कितने बेकरार हैं



सब कहते हैं की झूठ है ये बात

पर न जाने क्यों

दिल कहता है

कि तू चल पड़ी है

मेरी ओर



तू आ रही है न?







Thursday, June 2, 2011

वही वही वही!!!

तेइसवीं  मंजिल पर
फाइल से सरक कर
खिड़की से उड़ चले
कीमती कागज़ सा वक़्त
देखते देखते उड़ता चला जा रहा है
अपनी पकड़ से बाहर
अफ़सोस और निराशा
लाचार दिमाग
सिर्फ ये सोचता है कि
इसका डुप्लीकेट कैसे मिलेगा

जैसे पहाड़ के सर पर
हम सब के पैरों के बीच
लड़ता मचलता फ़ुटबाल है वक़्त
जो ज़रा से जोश में लगी लात से
लुढ़क चला है जिंदगी की पहाड़ी से नीचे
हमारी रफ़्तार और पकड़ से बहुत तेज़
नीचे नीचे और नीचे जाता
गुम होता वक़्त
पहाड़ी के ऊपर से
संभलकर झांकते बेबस हम सब
की अब खेल ख़त्म

जैसे समुद्र किनारे
रेत में बनाए घर में
लहर ने भर दिया हो पानी
बारिश में बहाई कागज़ की कश्ती
कुछ दूर चल कर जाए डूब
मेले के खेल में
डूब जाए पैसा और न निकले इनाम
फिर फिर याद आता है
वो वक़्त, वो स्कूल, वो दोस्त
और जिद कर बैठता है मन
वही वही वही !!!
पर क्या लौटेगा वक़्त?
हवा का एक झोंका आएगा
और खिड़की से उड़ा कागज़
वापस आ जाएगा
फिर खिड़की से?
गेंद हमारे दिल की सुनेगी
और न्यूटन को झुठला कर
फिर चढ़ जायेगी पहाड़
हमारा दिल रखने को?
रेत के किनारे का घर
बन जाएगा महल और हम सब खेलेंगे उसमें ?
बारिश में बहाई कश्ती
जा मिलेगी नदी में और फिर समुद्र में
उसमें बैठ घूमेंगे हम सात समंदर
और पांच महाद्वीप?
मेले के खेल में लगेगा अपना दांव
और वक़्त होगा हमारी मुट्ठी में?
मुश्किल है न ये सब?
पर फिर क्यों है यह जिद?
वही वक़्त, वही स्कूल, वही दोस्त
वही वही वही!!!

Thursday, May 26, 2011

क्यों नैन तुम्हारे भरे-भरे?



क्यों नैन तुम्हारे भरे-भरे?

चेहरा उतरा, तेवर मद्धम,
कोयल जैसी बोली भी कम,
संगीत कहाँ झरने जैसा?
हिरणी जैसी आँखें हैं नम
दिखलाओ, घाव जो हरे-हरे

क्यों नैन तुम्हारे भरे-भरे?

किस डगर चलीं तुम देर रात?
जा चुभी कहाँ विषभरी भरी बात?
पथ आयेंगे पथरीले भी
जन्मों तक चलना साथ साथ
उफ़! घाव पाँव में हरे-हरे

क्यों नैन तुम्हारे भरे भरे?

जब रोका, क्यों उस ओर गयी?
 जलती गलियों की ओर गयी
विषभरी दर्द की दुनिया में,
मीठी रजनी को छोड़ गयी
सुन्दर मौसम थे हरे-भरे

क्यों नैन तुम्हारे भरे भरे?

आ होठों से कांटे चुन लूँ
आंसू से तेरे पग धुल दूं
मखमल-मखमल, रेशम-रेशम
पांवों के तले धरती बुन दूं
जन्नत हो, जहां तू पाँव धरे

क्यों नैन तुम्हारे भरे-भरे?

Wednesday, May 25, 2011

गुलाबी सी लड़की

बहुत खूबसूरत गुलाबी सी लड़की
महकती ग़ज़ल गुनगुनाती सी लड़की

मेरी ज़िन्दगी में बिखरती-संवरती
वो चंचल परी, मुस्कुराती सी लड़की

 बड़े शोख मासूम अंदाज़ उसके
वो धोखे से आँचल हटाती सी लड़की

सुबह-शाम, दिन में, अँधेरे-उजाले
मोहब्बत के किस्से सुनाती सी लड़की

बड़ी उम्र सपनों में जिसको संवारा
हकीकत बनी, दिल लुभाती सी लड़की

कई ख्वाब दिल में सजीले-सुनहरे
बनाती सी लड़की, मिटाती सी लड़की

वो हंस दे तो बारिश का व्रत टूट जाए
वो रो-रो के दुनिया डुबाती सी लड़की

ग़ज़ल, खुशबुओं, बारिशों की सहेली 
हर एक शाम मौसम सजाती सी लड़की

सुनहली-सुनहली, रुपहली-रुपहली
सुबह-शाम लिखती, मिटाती सी लड़की 

चमक, चांदनी, चाँद, सूरज, सितारों
के जेवर पहनकर लजाती सी लड़की

उतरते सवेरे की रंगत में उंगली
डुबो पैर रंगती, लुभाती सी लड़की

ढली शाम पंजों पे उंचा उचक कर
दबे पाँव सूरज बुझाती सी लड़की
 
अँधेरा बुलाकर, सितारे सजाकर
हर एक शाम बिस्तर सजाती सी लड़की
 
ग़ज़ब अंग गोरा, गुलाबी-गुलाबी
अजब आग मुझमें जगाती सी लड़की
 
दहकता शरारा बदन आग जैसा
सबर को सताती, जलाती सी लड़की
 
महकती-दहकती, सताती-चिढ़ाती
नशीले से किस्से सुनाती सी लड़की
 
बहाने बनाकर, कहानी सुनाकर
मोहब्बत से दामन बचाती सी लड़की
 
महकते बदन के सभी राज़ कहकर
शरम में छिपी, मुस्कुराती सी लड़की
 
गरम गुनगुने प्यार की बारिशों में
संभालती, फिसलती, नहाती सी लड़की
 
बहुत प्यार के सागरों में नहाकर
गरम नींद में डूब जाती सी लड़की
 

Thursday, December 23, 2010

ख्वाब में एक शब पास क्या तुम रहे

ख्वाब में एक शब पास क्या तुम रहे
मुद्दतों तक मेरे होश फिर गुम रहे

दरमियाँ शर्म की एक दीवार थी
इस तरफ हम रहे, उस तरफ तुम रहे

बारिशें प्यार की इस कदर आ गयीं
भीगते हम रहे, भीगते तुम रहे

रात में ख्वाब का एक महल बन गया
सौ जनम तक मेरे साथ फिर तुम रहे

चाँद, जुगनू, सितारे, महक, चांदनी
उम्र भर बैठ कर ताकते हम रहे