Thursday, May 26, 2011

क्यों नैन तुम्हारे भरे-भरे?



क्यों नैन तुम्हारे भरे-भरे?

चेहरा उतरा, तेवर मद्धम,
कोयल जैसी बोली भी कम,
संगीत कहाँ झरने जैसा?
हिरणी जैसी आँखें हैं नम
दिखलाओ, घाव जो हरे-हरे

क्यों नैन तुम्हारे भरे-भरे?

किस डगर चलीं तुम देर रात?
जा चुभी कहाँ विषभरी भरी बात?
पथ आयेंगे पथरीले भी
जन्मों तक चलना साथ साथ
उफ़! घाव पाँव में हरे-हरे

क्यों नैन तुम्हारे भरे भरे?

जब रोका, क्यों उस ओर गयी?
 जलती गलियों की ओर गयी
विषभरी दर्द की दुनिया में,
मीठी रजनी को छोड़ गयी
सुन्दर मौसम थे हरे-भरे

क्यों नैन तुम्हारे भरे भरे?

आ होठों से कांटे चुन लूँ
आंसू से तेरे पग धुल दूं
मखमल-मखमल, रेशम-रेशम
पांवों के तले धरती बुन दूं
जन्नत हो, जहां तू पाँव धरे

क्यों नैन तुम्हारे भरे-भरे?

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