गिरेंगे शाख से धरती पे, बिखर जाएंगे
संग हवाओं का ये अब और सह न पाएंगे
शिकस्त हाथ में लिक्खी है मुकद्दर की तरह
ये लोग कुछ भी करें, जीत नहीं पाएंगे
तुम्हारी ज़िद है तो तूफ़ान बन के आओ फिर
हमारी ज़िद है कि हम फिर दिए जलाएंगे
हमारे घर को ज़रुरत नहीं हिफाज़त की
हमारे घर ये खजाने नहीं समाएंगे
मैं हादसे में तो इस बार बच गया लेकिन
ये मेरे दोस्त ही झूठी खबर उड़ायेंगे
तुम्हें जाना है सरे-शाम घर, चले जाओ
हम तो कुछ देर उदासी के गीत गाएंगे
आप तो एक महान कवि निकले दोस्त आज तक मैं आपकी इन रचनाओ से महरूम क्यों था :)
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