Friday, June 18, 2010

चमचमाती कामयाबी

कांच सा टूट के सपनों के बिखर जाने तक
तुम रुकोगे नहीं अब मौत के आ जाने तक

ज़िन्दगी इस कदर उलझी है थके पैरों में
लड़खड़ाना ही सफ़र है कहीं गिर जाने तक

रतजगे आँख में अंगार बन के चुभते हैं
नींद का ख्वाब भी मुमकिन नहीं सो जाने तक

कहीं ठहरो जरा सा और थोड़ी सांस ले लो
इतनी मोहलत भी नहीं सांस उखड़ जाने तक

तुम्हें अच्छी लगे ये चमचमाती कामयाबी
हम तो सोयेंगे अभी धूप के आ जाने तक

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